अन्ना तुम संघर्ष करो…हम तुम्हारे साथ हैं
अगस्त 30, 2011 at 3:41 अपराह्न टिप्पणी करे
ब्लॉ.ललित शर्मा, शुक्रवार, २६ अगस्त २०११
रात को लिखने की तैयारी कर रहा था, तभी कम्प्यूटर अनशन पर चला गया. सोचा कि सुबह उठ कर मनाया जायेगा. सरकार तो अन्ना को नहीं मना सकी. हो सके तो मै कम्प्यूटर को मना लूँ. सुबह कम्प्यूटर को मनाने के लिए धुप दीप की तैयारी कर रहा था तभी बाल सखा रामजी आ गए. “कहीं जाये के तैयारी हे का महाराज?”…..”हा हो रे भाई…. कम्प्यूटर नई मानत हे गा, शहर के हवा खवाए ला परही”. – मैंने जवाब दिया. उसने बताया कि आज नगर में अन्ना के समर्थन में रैली निकाली जा रही है. मुझे भी उसमे अपनी उपस्थिती दिखानी है. मैंने शहर जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया. कंप्यूटर तो अपना साथी है. एक दिन बाद मना लेंगे. अगर नगर के ईमानदार लोग रूठ गए तो भ्रष्ट लोगों में ही ताजिंदगी बैठना पड़ेगा. उसने बताया कि स्कुल के बच्चे भी रैली में शामिल होंगे.
भीड़ बढ़ाने के लिए स्कुल के बच्चों से अच्छा उपाय कुछ नहीं है.अगर कोई नेता आता है तो स्कुल के बच्चों के हाथों में झंडियाँ देकर खड़े कर दो. भीड़ दिख जाएगी और नेता जी भी खुश हो जायेंगे. कोई रैली निकाले तो स्कुल के बच्चों को ले आओ. अपने गाँव-नगर के बच्चे हैं उन्हें इतना तो बलिदान करना ही पड़ेगा गाँव-नगर की इज्जत बचाने के लिए. अन्यथा कहा जाता है.-” देश धर्म के काम ना आये, वह बेकार जवानी है”. रैली निकल पड़ी, गाँव के कुछ बुद्धिजीवी किस्म के ईमानदार माने जाने वाले लोगों के साथ कुछ युवा भी थे. जोश से नारा लगा रहे थे -” देश की जनता त्रस्त है, जो अन्ना का साथ न दे वह भ्रष्ट है.” अब कौन भ्रष्ट कहलाना चाहेगा. लोग रैली में साथ-साथ हो लिए. स्वस्फूर्त रैली निकली, कुछ लोग कह रहे थे. इस बार बिना बुलाये काफी लोग रैली में आ गए.हमने भी साथ-साथ नगर भ्रमण कर लोगों को जगाया और बहती गंगा में हाथ धो लिया. अगर कम्प्यूटर को मनाने चला जाता तो अन्ना समर्थन गंगा यूँ ही बह जाती और मैं ठगा सा रहा जाता.
रामजी ने बहुत बड़ा अहसान मेरे पर किया. इस अहसान को मेरी कई पुश्ते नहीं भूलेंगी. क्योंकि आज़ादी की दूसरी लडाई चल रही है, काले अंग्रेजों को देश से बाहर भगाना है. मेहतरू जी का कहना था कि इन्हें देश से बाहर भगाने में प्रत्येक नागरिक का योगदान होना चाहिए. वह भी अपनी पान की दुकान में बेटे को बैठा कर आया था. देश से भ्रष्ट्राचार मिटाना है तो यह त्याग जरुरी हो जाता है. रैली में चलते हुए सोच रहा था कि जब अंग्रेजों को भगाया होगा तो ऐसे ही रैली निकाली जाती होगी. लोगों के नाम दर्ज किये जाते होंगे. कौन-कौन और कितने लोग रैली एवं प्रदर्शन में थे? तभी तो आज़ादी के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की पहचान हुयी होगी और पेंशन बनी होगी. मेरे दादा-परदादा रैली प्रदर्शन में जरुर रहे होंगे, लेकिन नाम दर्ज कराने की जहमत नहीं उठाई होगी. अन्यथा वे भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होते. हां पिताजी ने फ़ौज की सेवा में रहते हुए कई मेडल प्राप्त किये. अगर वे भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होते तो दो-तीन पेंशन अम्मा को जरुर मिलती. इसलिए मैंने आज रैली में हाजिरी दर्ज कराने की ठान ली. अगर कहीं नाम नहीं लिखाया तो द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पेंशन से वंचित रह जाऊंगा.
कई आन्दोलनकारियों ने अन्ना टोपी लगा रखी थी. मेरे जैसे कई लोगों के पास टोपी नहीं थी. कहने लगे बिना टोपी के समर्थन नहीं माना जायेगा. अब टोपी कहाँ से लायी जाये? पता चला कि टोपी गाँव में ही मिल रही है. एक दुकान में दुप्प्ली टोपी २० रुपये की मिल रही थी, दूसरी दुकान में १५ रूपये की. रामजी दुकानदार पर भड़क गए, कहने लगे तुम दिन दहाड़े ५ रूपये का भ्रष्ट्राचार कर रहे हो. मैंने उन्हें समझाया कि – यही तो व्यापार है, व्यापारी अगर मौके का फायदा उठा कर अधिक मुनाफा नहीं कमाएगा तो चंदा कहाँ से देगा? किसी भी आन्दोलन को चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है और धन सिर्फ व्यापारी ही दे सकता है. रामजी ने टोपी खरीद ली और शान से धारण कर ली. टोपी ने रैली में रौनक बढा दी. एक बात तो माननी पड़ेगी, अन्ना ने गाँधी टोपी का खोया हुआ सम्मान वापस दिला दिया. गाँव में भी टोपियाँ बिकने लगी. नौजवानों को नया फैशन मिल गया. “सर पर टोपी हाथ में मोबाईल ओ तेरे क्या कहने”. रैली पुरे शबाब पर थी. नारों से आसमान गूंज रहा था. नगर भ्रमण कर रैली बस स्टैंड पहुच गई.
बस स्टैंड में माइक लाउड स्पीकर की देश भक्ति के गीत बज रहे थे. होश सँभालने के बाद मैंने पहली बार १५ अगस्त और २६ जनवरी को छोड़ कर किसी और दिन देश भक्ति के गाने बजते देखे. वातावरण देश भक्तिमय हो गया. कुछ नेता कुर्सियों पर विराजमान थे. भाषण बाजी का दौर शुरू हुआ. नगर पंचायत अध्यक्ष के भाषण से सभा की शुरुवात हुयी. उन्होंने अपना समर्थन अन्ना को दिया और कहा कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह आजादी की दूसरी लडाई में सम्मिलित हो. व्यापारी अपनी दुकानों में धंधा करते हुए भाषण सुन रहे थे. गुरूजी बोले-“हमारे गाँव में तो परसों सारे लोग कार्यक्रम में शामिल हुए थे. आपके गाँव में ऐसा नहीं दिख रहा है”. मैंने कहा कि – “इनका अन्ना को नैतिक समर्थन है. दुकान से उनका समर्थन अन्ना को मिल रहा है. वे धंधा करते हुए गायत्री मन्त्र का जाप कर रहे हैं, जिससे दिल्ली में अनशन पर बैठे अन्ना को मन्त्र की शक्तियों से बल मिल रहा है. मंत्र शक्ति के प्रताप से ही अन्ना १० दिनों से बिना आहार ग्रहण किये अनशन पर हैं”. तभी माइक से पीत वस्त्रधारी सज्जन ने एलान किया – “जो धरना स्थल पर नहीं पहुच पाए है, उन भाइयों एवं बहनों से निवेदन है कि अपने स्थान से ही गायत्री मन्त्र का जाप करें. मंत्र शक्ति से आपका समर्थन अन्ना तक पहुँच जायेगा.”
तभी दो देश भक्त नागरिकों का धरना स्थल पर आगमन हुआ. उन्होंने हिलते-डुलते अपने चप्पल निकाले और दरी पर स्थान ग्रहण किया. भाषण के बीचे में हाथ इस तरह हिलाते थे जैसे मुजरा सुन रहे हों. एक ने भाषण देने वाले की तरफ इशारा करके कहा-” जोर से बोलो, कम सुनाई दे रहा है. वन्दे मातरम्, जय भारत”. दुसरा दांत निपोर रहा था. तभी उसके तहमद से दारू की बोतल निकल कर गिर गई. उसने हाथ जोड़ कर बोतल उठाई और फिर तहमद में खोंस ली. “जय भारत माता की. अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं”. दोनों अनशन की पूरी तैयारी से आये थे. पहले वाला उठा और उसने तिरंगे झंडे को नमन कर चल पड़ा भट्ठी की ओर, दूसरा भी उसके पीछे पीछे निकल लिया. इसके बाद हमारा भी भाषण हुआ, कुछ पत्रकार भी धरना स्थल की नाप-जोख कर रहे थे. अब हमारा नाम भी पक्के में दर्ज हो जायेगा, सुबह के अख़बारों में नाम छपने से. हाजरी रजिस्टर भी आ चूका था. दुसरे नंबर पर हमने अपना नाम लिख कर हस्ताक्षर किया इस ताकीद के साथ कि इसकी एक प्रति हमें भी उपलब्ध करायी जाये, पेंशन के लिए राजनीति हुयी तो प्रमाण पेश कर सकेंगे. अन्ना को समर्थन देकर चल पड़े घर की ओर……… अन्ना तुम संघर्ष करो…हम तुम्हारे साथ हैं.
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गजब!
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पंडित जी, ये ऐसा लग रहा है ….. हमारे चौक का वाकया लिख दिया है
मस्त… एकदम.
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बिलकुल ऐसा ही हो रहा है…गहरा कटाक्ष
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हमारे भी तरफ आने का कष्ट करेंगे अगर समय की पाबंदी न हो तो आकर हमारा उत्साहवर्धन के साथ आपका सानिध्य का अवसर दे तो हमें भी बहुत ख़ुशी महसूस होगी…..
MITRA-MADHUR
MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
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रामराम.
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बहुत खूब !
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इस बार यह अच्छा संकेत है कि जिस युवा पीढी को लोग भटका हुआ बताते हैं वो युवा पीढी पूरी तल्लीनता से और अनुशासन के साथ अन्ना के आंदोलन में शामिल हुई।
देश के लिए यह अच्छी बात है।
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नई पुरानी हलचल से यहाँ आये.
अब आपने अन्ना जी के अनशन को तोड़ने की
सब तैय्यारी कर ली है,चलिए चलते हैं रामलीला मैदान.
हम भी आपके साथ हैं.
मेरे ब्लॉग पर भी तशरीफ लाईयेगा.
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रामदेव को अन्ना के अनशन से सीख लेनी चाहिए।
लेख के बीच-बीच में चुटकी जोरदार है।
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भाई साहब ! किसी भी कार्यक्रम का बारीकी से अवलोकन और बाद में उसका लगभग यथावत चित्रण आपके आलेखों की एक बड़ी विशेषता है. इस रोचक आलेख के लिए बधाई और आभार.